Thursday, 9 November 2017

दिल्ली का सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी का इतिहास हिंदी मे। Allauddin Khilji of Delhi Sultanate History in hindi

 दिल्ली का सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी


सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी















पूरा नाम-       अलाउद्दीन खिलजी (अली) 
जन्म-             सन 1266 से 1267 
मृत्यु-              सन 1316   दिल्ली  भारत 
शासन काल-   1296 1316 
पिता-             शहाबुद्दीन मसूद 
जीवनसाथी-   मल्लिका ए जहां,
                     कमला देवी,  
                     सत्यपति। 



कौन था अलाउद्दीन खिलजी?


अलाउद्दीन खिलजी का जन्म संवत 1266 1267 के बीच माना जाता है इनके बचपन का नाम अली था यह दिल्ली सल्तनत का सुल्तान या खिलजी वंश का दूसरा सुल्तान था 
इससे पहले इसके चाचा जलालुद्दीन खिलजी प्रथम खिलजी सुल्तान थे जिन्हें इसने 1296 में धोखे से मरवा दिया था जलालुद्दीन का मृत्यु का कारण यह माना जाता है 
कि इसने अपने भतीजे अलाउद्दीन खिलजी को कड़ा के राज्यपाल मलिक छज्जू के जलालुद्दीन खिलजी के खिलाफ विद्रोह को दबाने में मुख्य भूमिका निभाई थी जिससे खुश होकर जलालुद्दीन खिलजी ने इसे कड़ा तथा मानिक कपूर की सूबेदारी पद की जिम्मेदारी दे दी फिर अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सूबेदारी पद पर रहते हुए अनेक सफल अभियान चलाए जिससे उसके पास अपार धन था और मजबूत शासन व्यवस्था बन गई थी

जिसके कारण ही अलाउद्दीन खिलजी को सुल्तान बनने की लालसा जागी और इसी वजह से उसने अपने सगे चाचा  जलालुद्दीन को धोखे से मरवा दिया माना जाता है कि जलालुद्दीन खिलजी जो इसे अपनी औलाद से भी ज्यादा चाहता था उसे इस ने धोखे से मरवा कर खुद 1296 में दिल्ली का सुल्तान बना


अलाउद्दीन खिलजी का शासन काल व शासन व्यवस्था


              सन 1296 में दिल्ली का सुल्तान बना सुल्तान बनने के बाद ही कोई दिल्ली सल्तनत का एहसास सुल्तान होगा जिसने विपरीत परिस्थितियों में अपने कठोर शासन के द्वारा और बड़ी मेहनत से अपने साम्राज्य का विस्तार किया हो   
                        क्योंकि अलाउद्दीन खिलजी एक योद्धा व कठोर अनुशासन वाला सुल्तान था जिसका लक्ष्य केवल कठोर शासन के साथ अपने साम्राज्य को अधिक से अधिक दिलाना था युद्ध में अनेक सफलताओं से खुश होकर अलाउद्दीन खिलजी ने अपने नाम के सिक्के चलवाए जिस पर सानी लिखा हुआ था इसका मतलब होता है विश्व विजेता अथवा वह अपने आपको सिकंदर द्वितीय मानता था इसने अपने शासनकाल में घोड़ों को दागने की प्रथा चलवाई शासन व्यवस्था मैं अलाउद्दीन खिलजी का कोई जवाब नहीं था 

आपको जानकर हैरानी होगी कि अलाउद्दीन खिलजी ने एक नए धर्म की शुरुआत करने की कोशिश की थी परंतु अपने मित्रों के समझाने पर वह सुझाव उसने त्याग दिया था इसके बाद इसने अलाउद्दीन की उपाधि ली जिसका मतलब होता है अल्लाह के द्वारा भेजा गया  है आप अलाउद्दीन खिलजी की बुद्धि का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि उसने बोला था कि उसे अल्लाह के द्वारा भेजा गया है प्रजा की सेवा के लिए उसने ऐसा कह कर एक अलौकिक बात कह दी जिसे यदि अगर उसके प्रजा में कोई विरोध ना कर सके दिल्ली सल्तनत में अलाउद्दीन खिलजी की शासन व्यवस्था काफी निपुण थी 
दिल्ली सल्तनत के हर सुल्तान अपनी शासन व्यवस्था को बनाए रखने के बारे में बड़े-बड़े मौलवी तथा उलेमाओं से सलाह लेते थे पर अलाउद्दीन ऐसा नहीं करता था यहां तक कि उसने इस्लाम धर्म के सिद्धांतों को महत्व ना देकर राज्यत्व को ही सर्वोपरि माना यानी कि जो भी फैसला किया जाएगा वह केवल राज्य के हित के लिए होगा अलाउद्दीन खिलजी ने इस्लाम के सिद्धांतों की सलाह नहीं ली थी


अलाउद्दीन के शासनकाल में विद्रोह


        अलाउद्दीन खिलजी को कई विद्रोहों का सामना करना पड़ा था जिसके कुछ विद्रोह उनके परिवारिक तथा कुछ अन्य राजाओं द्वारा थे अगर हम विद्रोह की बात करें तो अलाउद्दीन खिलजी के भांजे उमर एवं मंगू ने किया जिसके कारण अलाउद्दीन खिलजी ने दोनों भाइयों को मरवा दिया था फिर एक विद्रोह गुजरात विजय पर हुआ जब अलाउद्दीन खिलजी तथा नव मुसलमानों के संयुक्त रुप से गुजरात विजय के बाद धन को बटवारे को लेकर हुआ 
            जिसे नुसरत खान द्वारा दबा दिया गया था इन सबसे प्रमुख विद्रोह था तो अमीरों का दुर्ग अमीरों के विद्रोह का अध्ययन करके अलाउद्दीन खिलजी ने कुछ संगठन बनाए जिसमें दीवान ए बरीद जो कि एक गुप्तचर विभाग था जिसका काम सल्तनत में हो रहे राज्य विरोधी गतिविधियों को एकत्रित करना तथा उसे अलाउद्दीन खिलजी तक पहुंचाना था और इसने कई नए अध्यादेश दिए जिसमें जुआ खेलना गांजे की खेती करना पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया था और खेतों और मुकदमा तथा हिंदू लगान को भी इसने समाप्त कर दिया था


अलाउद्दीन खिलजी के साम्राज्य का विस्तार व रानी पद्मावती



अलाउद्दीन खिलजी ने अपने शासनकाल में अपने साम्राज्य का विस्तार दक्षिण के मदुरै तक कर लिया था वह एक साम्राज्यवाद प्रवृत्ति का सुल्तान था जो कि अपने सम्राज्य को खुद अपने द्वारा चलाता था उस समय दक्षिण के कुछ राज्यों को उसने अपने अधीन कर लिया तथा उनसे वार्षिक कर वसूला जोकि उस समय एक सुल्तान के लिए अपने आप में बड़ी उपलब्धि थी

गुजरात विजय करने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने नुसरत खां को भेजा और यहां पर कर्णदेव वाघेला जो उस समय का राजा था उसका उस से युद्ध हुआ परिणाम स्वरुप करण सिंह को इस युद्ध में पराजित होना पड़ा तथा वह अपनी पुत्री के साथ भाग गया और अलाउद्दीन खिलजी ने उसकी पत्नी कमला देवी जो की अति सुंदर थी उसे दिल्ली ले आया और उसके साथ विवाह कर लिया माना जाता है कि कमला देवी अलाउद्दीन की सबसे प्रिय पत्नी थी इसी समय ही नुसरत का 1000 दीनार में एक हिंदू हिजड़ा मलिक काफूर को खरीदा था


सन 1305 में अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ को विजय करने के लिए निकला उस समय चित्तौड़ मेवाड़ की राजधानी थी तथा चित्तौड़ में राजपूत राजा रतन सिंह का शासन था तथा चित्तौड़ किला पहाड़ पर बना हुआ था जिससे यह एक अति सुरक्षित किला भी था इसी दृष्टि से अलाउद्दीन खिलजी को वह हर हाल में चाहिए था और कुछ इतिहासकार मानते हैं कि अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ के राजा रतन सिंह की पत्नी पद्मावती के सौंदर्य के कायल थे और वह किसी भी तरह से पद्मावती को पाना चाहते थे अंत में 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया परिणाम स्वरुप राजा रतन सिंह को इस युद्ध में पराजय का सामना करना पड़ा और अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर अपना अधिकार कर लिया तथा राजा रतन सिंह उस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए तथा उनकी पत्नी पद्मावती जिसे वह पाना चाहता था वह अन्य स्त्रियों के साथ आग में जहर कर लिया
                             बीमारी से पीड़ित होने के कारण अलाउद्दीन खिलजी का अंतिम समय बहुत कठिनाई से गुजरा था अतः 1316 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हो गई



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